क़ैद आवाजें..

क्या आवाजें क़ैद हो गयीं हवाओं में..
प्रार्थना के बोल..
कुछ अनसुलझे प्रश्न..
और नितांत अपने से दुःख..
जो होंठ भींच के कहे  थे मैंने..
तुम तक पहुँच नहीं पाए..
लौट के भी नहीं आये..
लगता है वो सारी आवाजें 
सज़ायाफ्ता मुजरिम में तब्दील हो गयीं..
तभी अक्सर चीखने से पहले 
आवाजें खुद-ब-खुद घुटने लगती हैं..
हश्र जानतीं है अपना..!!

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