क्या तुम सचमुच हो..!!

कुछ न होना..
शायद आकाश होना होता है..
तुमने घोषणा की 
और..मैं  ढूंढती रही  आकाश..
उस कुछ न होने में..
उगाती रही धूप..
खिलाती रही चाँद ..
आँख भर देखती रही झिलमिल तारे..
मेरा मौन..
उस कुछ नहीं से नीले एकांत में चीखता रहा..
और तुम निर्लिप्त रहे..
क्यूँ यूँ...
कुछ न होने का रंग नीला..सलेटी..
कभी कभी स्याह सा..

तुम्हारे रंग से मिलता है..
और मैं रंग से भ्रमित..
कुछ न होने में तुम्हारे होने के प्रति आश्वस्त..
लेकिन क्या तुम सचमुच हो..!!
मेरी दृढ आस्था से..
मेरे ह्रदय में भर आये शून्य से..!!

1 comment:

  1. सुंदर, मनीषा दि मेरे पास शब्द नहीं है

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