तुम्हें सोचना अक्सर ...
कुछ यूँ करता है..
आँखें उठा कर देखती हूँ..
तुम्हारे नाम का इन्द्रधनुष
खिंचने लगता है आकाश में..
किनारे बहकने लगते हैं
उनींदी नदी..
आँखें खोल देती है..
आँगन के ज़रा और किनारे
आ लगती है धूप..
मैं पहन कर तुम्हारी खुशबू..
भीगने लगती हूँ..
उस लम्हा..ठहर जाती हूँ..
तुम्हें सोचना क्यूँ मुझे..
वक़्त की फ्रेम में जड़ देता है..!!