क्यूँ बिखरने लगती हूँ..!!

तुम्हारी आवाज़ भर्रायी सी
कहती है..प्रेम..
और पहन लेती है मेरी आंच का मफलर..
पिघलने लगती है..
रिसने लगती है आँखों से..
तुम मेरा आँचल थाम लेते हो..
शायद सम्हल जाते हो..
मैं..लेकिन..
क्यूँ बिखरने लगती हूँ..!! 

1 comment:

  1. आपका व्लाग पहली बार देखा और रचनाओं को देखता ही रह गया कई प्रश्नों का उत्तर मांगती है रचना , अत्यंत भावपूर्ण ,बधाई

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