''शेष फिर..''
इस एक शब्द ने बाँध लिया मुझे..
मैं अनमनी सी..
प्रतीक्षा में..
जो शेष रह गया उसे सम्पूर्णता देने..
जानती नहीं थी..
शेष फिर भी रह ही जाता है..
मेरी चिर प्रतीक्षा की तरह..
इस एक शब्द ने बाँध लिया मुझे..
मैं अनमनी सी..
प्रतीक्षा में..
जो शेष रह गया उसे सम्पूर्णता देने..
जानती नहीं थी..
शेष फिर भी रह ही जाता है..
मेरी चिर प्रतीक्षा की तरह..
बहुत सुंदर… ब्लाग भी …कविता भी
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