वो कभी नहीं देखता मेरी आँखों में..
जब लौटता है ..
सौंप कर अपने माथे की रेखाएं
कनपटी से बहता पसीना..
पलट जाता है..
मैं दिन भर अपने हिस्से के सूरज में सुलगते..
अपने पसीने की लकीरों को पोंछती
उसका पसीना आँचल में समेट लेती हूँ..
धुंए में तुम सँवला गयी हो..
है न..?
उसका ये कहना..
मुझे भस्म करता मुझ पर से होकर गुज़र जाता है..
और मैं सचमुच स्याह हो जाती हूँ ..!!
aah ...
ReplyDeleteBehad khubsoorat :)
ReplyDeleteमनीषा दी ये " स्याह " कही अपनी और खिचता हुवा सा है
ReplyDeleteअब कहने को क्या बचा………………गहरी वेदना।
ReplyDeleteमुझे भस्म करता मुझ पर से होकर गुज़र जाता है..
ReplyDeleteऔर मैं सचमुच स्याह हो जाती हूँ ..!!
वाह..............वेदना को जैसे इआपने बाँध लिया है इन शब्दों में..............बढ़िया !