शब्दों में बिखरा मौन..

1..भागती हांफती भीड़ में..
    कुचले जाने के आतंक से सहमा..
    चीखने को छटपटाता..
    अकेला सा बचा रह गया..
    उम्मीद का चुप..!!


2.. मैं हूँ..अब तक..
    विकट संयोगों में..
    जहाँ अनुकूल कुछ भी नहीं..
    सुलगती सी परिधि में..
    जहाँ एक नर्म आश्वासन नहीं..
    दूभर होते दिन रात..
    और तटस्थ से आशीर्वाद..
    फिर भी देखो..मैं हूँ..
    अब तक..
    नतमस्तक..!!


3.. बेचैन सी प्रतीक्षा ने
    जब भी लिखवाया
    बस प्यार ही लिखवाया..
    शायद यही वजह रही
    जब भी देखा कलम सजदे में ही दिखी..!!

4.. आवाज़..
     गले की गिरफ्त से जब निकली..
     एक लम्बी दरार थी उसमें..
     शायद..

     बदनसीब बहुत गिरहों में थीं..!!

5.. दिल अगर आ भी गया तो क्या..
     ये शहर तुम्हारा है...
     यहाँ के रास्ते..
     मुझे पहचानने से इनकार करते हैं...
     अजीब नज़रों से देखते हैं दरख़्त
     और सड़कें भटका देतीं..
     एक अदद शहर जिसे अपना कह सकूं..
     ढूंढ रही हूँ...!!


6.. रात हैरान हो कर देखती है..
    चाँद पलट कर सवाल करता है..
    और..ख्व़ाब बंधक है..
    रतजगे के सारे सामान मौजूद..!!


7.. भावनाएं बहुत अभिमानी हैं...
     नहीं टूटतीं यूँ सबके सामने..
     ये दम तोड़तीं हैं अक्सर..
     रात गए..!!

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