पता है तुम्हें..!!

  
कुछ अक्षरों को मनाकर..
अभी उनमें सहेजा है
हरापन जो सावन में लहका था..
सर्दियों की गुनगुनी धूप
जो सरहाने रख ली थी..

बसंत की पीली सरसों
छुपा ली है उसमें..
और हाँ..
झरते पत्तों को भी समेट लिया है..
अब ये अक्षर उगने लगे हैं..
मेरी डायरी में..
पता है तुम्हें..!!

3 comments:

  1. Dairy ko sambhal kar rakhiyega...

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  2. The diary has become million times more precious than before now.

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  3. beautiful expressions .....Keep writing ..!!

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