जब सोचती हूँ तुम्हें..


जब सोचती हूँ तुम्हें..
एक धुन गूंजती है..
स्वरों के व्याकरण से परे..
अपरिभाषित..अर्थवान..
मंदिर में कांपती दीपशिखा सम्मोहन सा रचती है..
धूप की सुगंध घेर लेती है मुझे..
और मैं.. 
तुम्हारे नाम की प्रदक्षिणा करने लगती हूँ..!!


11 comments:

  1. जब सोचती हूँ तुम्हें..
    एक धुन गूंजती है..
    स्वरों के व्याकरण से परे..
    अपरिभाषित..अर्थवान..
    मंदिर में कांपती दीपशिखा सम्मोहन सा रचती है..
    धूप की सुगंध घेर लेती है मुझे..
    और मैं..
    तुम्हारे नाम की प्रदक्षिणा करने लगती हूँ..!!
    sampoorn bhaw pooja ki tarah hain

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  2. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..

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  3. ati uttam rachana...bhavpravan

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  4. प्रेम की सफल अभिव्यक्ति।

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  5. अच्छा लिखा है आपने...मर्मस्पर्शी...

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  6. समर्पण संभवतः इसी को कहते हैं ! सुंदर भावाभिव्यक्ति !

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  7. मात्र आठ पंक्तियॉ और सारा का सारा प्यार सागर सिमट आया। सचमुच यह लिखते समय आपकी अंगुलियॉ शंकर की जटाएं बन गई होंगी जिन्होंने इतने गहन और तीव्र भावों को शब्द-शब्द छलका दिया, खूबसूरती से, अनुराग से। वाह!

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  8. बहुत कोमल अहसास..बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना..

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  9. Log sahi kehte hain prem daivic hota h... aise hi devine love ko define karti ye kavita behad pasand aayi :)

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  10. Aap sabhi ka dil se shukriya..mera manobal bana rahta hai...

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