जब सोचती हूँ तुम्हें.. एक धुन गूंजती है.. स्वरों के व्याकरण से परे.. अपरिभाषित..अर्थवान.. मंदिर में कांपती दीपशिखा सम्मोहन सा रचती है.. धूप की सुगंध घेर लेती है मुझे.. और मैं.. तुम्हारे नाम की प्रदक्षिणा करने लगती हूँ..!! sampoorn bhaw pooja ki tarah hain
मात्र आठ पंक्तियॉ और सारा का सारा प्यार सागर सिमट आया। सचमुच यह लिखते समय आपकी अंगुलियॉ शंकर की जटाएं बन गई होंगी जिन्होंने इतने गहन और तीव्र भावों को शब्द-शब्द छलका दिया, खूबसूरती से, अनुराग से। वाह!
जब सोचती हूँ तुम्हें..
ReplyDeleteएक धुन गूंजती है..
स्वरों के व्याकरण से परे..
अपरिभाषित..अर्थवान..
मंदिर में कांपती दीपशिखा सम्मोहन सा रचती है..
धूप की सुगंध घेर लेती है मुझे..
और मैं..
तुम्हारे नाम की प्रदक्षिणा करने लगती हूँ..!!
sampoorn bhaw pooja ki tarah hain
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteati uttam rachana...bhavpravan
ReplyDeleteप्रेम की सफल अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने...मर्मस्पर्शी...
ReplyDeleteसमर्पण संभवतः इसी को कहते हैं ! सुंदर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteमात्र आठ पंक्तियॉ और सारा का सारा प्यार सागर सिमट आया। सचमुच यह लिखते समय आपकी अंगुलियॉ शंकर की जटाएं बन गई होंगी जिन्होंने इतने गहन और तीव्र भावों को शब्द-शब्द छलका दिया, खूबसूरती से, अनुराग से। वाह!
ReplyDeleteबहुत कोमल अहसास..बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना..
ReplyDeletesundar !
ReplyDeleteLog sahi kehte hain prem daivic hota h... aise hi devine love ko define karti ye kavita behad pasand aayi :)
ReplyDeleteAap sabhi ka dil se shukriya..mera manobal bana rahta hai...
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