तुम्हें सोचना अक्सर ...
कुछ यूँ करता है..
आँखें उठा कर देखती हूँ..
तुम्हारे नाम का इन्द्रधनुष
खिंचने लगता है आकाश में..
किनारे बहकने लगते हैं
उनींदी नदी..
आँखें खोल देती है..
आँगन के ज़रा और किनारे
आ लगती है धूप..
मैं पहन कर तुम्हारी खुशबू..
भीगने लगती हूँ..
उस लम्हा..ठहर जाती हूँ..
तुम्हें सोचना क्यूँ मुझे..
वक़्त की फ्रेम में जड़ देता है..!!
बहुत सुन्दर ख्याल्।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ..................सच जिसे चाहा हो उसके बारे में सोचना आपको ....हमेशा still कर देता है...............
ReplyDeleteतुम्हें सोचना क्यूँ मुझे..
ReplyDeleteवक़्त की फ्रेम में जड़ देता है..
बहुत सुन्दर ख्याल ...
तुम्हें सोचना क्यूँ मुझे..
ReplyDeleteवक़्त की फ्रेम में जड़ देता है..kyonki pyaar hai her soch me
मैं पहन कर तुम्हारी खुशबू..
ReplyDeleteभीगने लगती हूँ..
khubshurat...
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/06/blog-post_03.html
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut achcha likhtin hain aap.
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeletenice post sir ji
ReplyDeleteपारिजात के बारे में जानकारी और फायदे