दीवार पर टंगी तस्वीर पर
लगभग..शाम चार बजे..
हर रोज़ एक धूप का टुकड़ा आ ठहरता है..
और मैं निर्निमेष ताकती हूँ..
तस्वीर पर रुका आंसू
किसी दिन तो सूखे..!!

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