क्या उठा सकोगे मेरे ह्रदय का भार ....???

यमुनाजी का जल अंजुरी में भर..
तुम्हे अर्घ्य अर्पित कर पूछती हूँ..मनमोहन..
कहीं स्मृति में धंसी है वो छवि..?
हाँ..वही..
अनजाने ही तुम्हारे चरणों से
कुचला  गया..
पारिजात का फूल हूँ मैं..
तुमने बिसराया जिसको 
उसी ब्रज की धूल हूँ मैं..
गोवर्धन का भार उठाया था तुमने...कान्हा..
उठा सकोगे मेरे हृदय का भार...??


4 comments:

  1. ब्लॉग जगत में स्वागत है मनीषा जी :)

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  2. waah! Maza aa gayaa... sundar ! kavita bhi pyaari hai :))

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  3. "ओ पारिजात,
    ओ हरसिंगार,
    तुझको लाया था मैं ही तो,
    नंदन-कानन से धरती पर,
    तूने ही तो चाहा था,
    मेरी चरणधूलि के
    अंगराग में लिपटना,
    तूने ही तो चाहा था,
    मेरे चरणों में मिट जाना !!"

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  4. अरे.......वाह....इस दुनियां में....स्वागत...मनीषा जी...
    अब अच्छी कविताएं एक साथ पढ़ने को मिलेंगी....

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