अब लफ्ज़ हाथों से नहीं 
आँखों से गिरा करते हैं..
भीगे भीगे लफ्ज़..
इनका रंग क्यूँ सुर्ख हुआ जाता है..?
पहले तो ये पानी से हुआ करते थे..!!
ज़मीं पर गिरते हैं..
हाथों से गिरी दुआ की तरह..
जहाँ दबी हैं कई चीखें..
और बेआवाज़ कराहें....
मेरे लफ्ज़ सिहरते हैं..रिसते हैं..
शायद ज़ख़्मी हैं....

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर...दिल की गहराई तक पहुँचने वाला

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