एक बार क्यूँ न वक़्त को मुल्तवी किया जाए..!!
फिर घूँट भर चांदनी गटकी जाए..
उँगलियों से आकाश पर चाँद उकेरा जाए..
चुपचाप एक रेस्तरां में बेवजह बैठे हुए
कोंफी से निकलती भाप को
हथेलियों में रोक..
उसे पसीने में तब्दील होते देखा जाए...
और आँखों में आती बूंदों को भीतर उंडेल लिया जाए..
चलो आज वक़्त को मुल्तवी किया जाए...
फिर घूँट भर चांदनी गटकी जाए..
उँगलियों से आकाश पर चाँद उकेरा जाए..
चुपचाप एक रेस्तरां में बेवजह बैठे हुए
कोंफी से निकलती भाप को
हथेलियों में रोक..
उसे पसीने में तब्दील होते देखा जाए...
और आँखों में आती बूंदों को भीतर उंडेल लिया जाए..
चलो आज वक़्त को मुल्तवी किया जाए...